🔹About the content creator :-
- Prakash Chabbra Jain ( Ex Software Engineer, Microsoft USA)
- Giving lectures across the India to spread the Jain Philosophy.
- Read and taught numerous Jain Scriptures for more than two decades.
- Proficient in Prakrit, Sanskrit, Hindi, English.
- His lectures are a blend of logical, practical and scientific connotation.
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4. ये पााँचों ही वीतरागी और ज्ञानी हैं
अरहंत-स्सद्ध पूर्ा वीतरागी और ज्ञानी हैं
आचाया,उपाध्याय,साधु एिदेश वीतरागी
और ज्ञानी हैं
वीतराग मागा पर चलने वाले हैं
5. देव हैंस्सद्ध
देव भी हैं और
गुरु भी हैं
अरहंत
गुरु हैंआचाया, उपाध्याय, साधु
देव और गुरु
6. जो गृहथिपना त्याग िर
मुस्न-धमा अंगीिार िर
स्नज थवभाव - साधन द्वारा
चार घास्त िमा िा क्षयिर
अनंत चतुष्टयरूप स्वराजमान हुए,वे अरहंत हैं।
अरहंत स्िसे िहते हैं?
7. चार घास्त िमा =
ज्ञानावरर्,
दशानावरर्,
मोहनीय
और
अंतराय
अनंत चतुष्टय
=
अनंत ज्ञान
अनंत दशान
अनंत सुख और
अनंत वीया
8. स्िस घास्त िमा िे अभाव से क्या
प्रिट हुआ
ज्ञानावरर् िे अभाव से अनंत ज्ञान
दशानावरर् िे अभाव से अनंत दशान
मोहनीय िे अभाव से अनंत सुख और
अंतराय िे अभाव से अनंत वीया
17. स्सद्धों िे 8 मूल गुर्
अनंत ज्ञान
अनंत दशान
अनंत वीया
क्षास्यि सम्यक्त्व
अगुरुलघुत्व
अवगाहनत्व
सूक्ष्मत्व
अव्याबाधत्व
18. अनंत ज्ञान ज्ञानावरणीय
अनंत दर्मन दर्मनावरणीय
अनंत वीयम अंतराय
क्षाययक सम्यक््व र्ोहनीय
अव्याबाध्व वेदनीय
अवगाहन्व आयु
सूक्ष्र््व नार्
अगुरुलघु्व गोत्र
8 िमों िे अभाव से प्रिट 8 गुर्
वे स्सद्ध
हैं
19. अरहंत बनने िे
िु छ समय बाद
समथत अन्य द्रव्य िा संबंध छूट जाने पर
पूर्ा मुक्त हो गये हैं
लोि िे अग्र भाग में
स्िं स्चत् न्यून पुरुषािार स्वराजमान हो गए
स्जनिे द्रव्य िमा, भाव िमा, नोिमा िा अभाव होने से
समथत आस्त्मि गुर् प्रिट हो गए
वे स्सद्ध हैं ।
स्सद्ध
21. शुभोपयोग अशुभोपयोग शुद्धोपयोग
3 प्रिार िा उपयोग
देव,शास्त्र,
गुरु िी भस्क्त
आस्द
5 पाप,
4 िषाय,
5 इस्न्द्रय स्वषय
में प्रवृस्ि
शुभ और अशुभ
उपयोग से रस्हत
वीतराग भाव
पहले
जाने
26. 1. धमा िे लोभी अन्य जीवों िो धमोपदेश
देते
2. दीक्षा लेने वाले िो योग्य जान दीक्षा देते
3. अपने दोष प्रिट िरने वाले िो प्रायस्िि
स्वस्ध से शुद्ध िरते
िरुर्ा बुस्द्ध से
28. जो सम्यग्दशान, सम्यग्ज्ञान, सम्यि् चाररत्र(रत्नत्रय) िी अस्धिता से
प्रधान पद प्राप्त िरिे
मुस्न संघ िे नायि हुए है
मुख्यपने शुद्धोपयोग िो साधते है
िरुर्ा बुस्द्ध से
धमा िे लोभी अन्य जीवों िो धमोपदेश देते
दीक्षा लेने वाले िो योग्य जान दीक्षा देते
अपने दोष प्रिट िरने वाले िो प्रायस्ित स्वस्ध से शुद्ध िरते है
ऎसा आचरर् िरने और िराने वाले आचाया िहलाते है
आचाया स्िसे िहते हैं?
42. आचाया, उपाध्याय िो छोड़िर अन्य समथत जो मुस्नधमा िे
धारि हैं
और आत्मथवभाव िो साधते हैं
बाह्य में उसिे साधनभूत 28 मूलगुर्ों में प्रवताते हैं
समथत आरंभ और अंतरंग-बस्हरंग पररग्रह से रस्हत होते हैं
सदा ज्ञान - ध्यान में लवलीन रहते हैं
समथत सांसाररि प्रपंचों से सदा दूर रहते हैं
उन्हें साधु परमेष्ठी िहते हैं
साधु स्िसे िहते हैं?
43. साधु िे 28 मूल गुर्
5 महाव्रत
5 सस्मस्त
5 इस्न्द्रय स्वजय
6 आवशयि
7 अन्य