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1
किसान आंदोलन का
लेखक : योगेंद्र यादव
गुटका
 किसान आंदोलन से जुड़े हर सवाल जवाब
 हर किसान विरोधी कानून का पूरा सच
 सरकारी और दरबारी दुष्प्रचार का भंडाफोड़
एक दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को एक किसान मिल गया।
वह बोले: आप “मन की बात” सुनते हैं?
किसान मुंहफट था, बोला: आप बड़े आदमी हो। आपक
े मन की
बात तो हर महीने सुनता हूं। आज एक किसान क
े मन की बात
भी तो सुन लो। दोनो में बात शुरू हो गई।
मोदी जी की किसान से क्या बात हुई?
मोदी जी: आपको पता है, हमारी सरकार किसानों क
े लिए
ऐतिहासिक कदम उठा रही है?
किसान: अब क्या बंद करने जा रहे हो जी? बुरा न मानना,
आप जब-जब किसी बात को ऐतिहासिक बोलते हो तो मुझे
डर लगता है। पहले ऐतिहासिक नोटबंदी की, फिर कोरोना में
ऐतिहासिक देशबंदी, अब किसानो का क्या बंद करोगे?
मोदी जी: मैं तो उन तीन ऐतिहासिक कानूनों की बात कर रहा
था जो सरकार किसानों क
े लिए लेकर आई है। यह किसानों
क
े लिए हमारी सौगात है।
किसान: सुनो जी, सौगात या उपहार वो होती है, जो किसी
लेखक परिचय: योगेंद्र यादव ‘संयुक्त किसान
मोर्चा’ की सात सदस्यीय राष्ट्रीय समन्वय
समिति क
े सदस्य। वर्ष 2015 जय किसान
आंदोलन क
े संस्थापक। पिछ्ले छह वर्ष से
किसान आंदोलन में सक्रिय: 2015 में भूमि
अधिग्रहण अध्यादेश क
े विरूद्ध ट्रैक्टर मार्च, 2015 में देशव्यापी
सूखे पर संवेदना यात्रा, 2015-16 में सूखे क
े दौरान किसान क
े
अधिकार क
े लिए सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा, 2016 में मराठवाड़ा
और बुंदेलखंड में जल हल पदयात्रा, 2017 में मंदसौर गोली
कांड क
े बाद अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति
की स्थापना में भूमिका, 2017 में देशभर में किसान मुक्ति यात्रा,
2018-19 में “किसान संसद” क
े आयोजन से जुड़ाव, 2018-
19 में एमएसपी सत्याग्रह और हरियाणा में सरसों और बाजरा
खरीद आंदोलन।
इस पुस्तिका का कोई कॉपीराइट नहीं है। किसान आंदोलन
क
े वास्ते इसको छापने और बांटने क
े लिए किसी इजाजत की
जरूरत नहीं है।
सहयोग राशि: 10 रुपये (या आप जितना दे सक
ें )
1
2 3
ने मांगी हो, या उसकी ज़रुरत हो, या उसक
े किसी काम की
हो। आप ही बताओ। देश में लॉकडाउन था। किसान कह रहा
था मुझे फसल का पूरा दाम चाहिए, नुकसान का मुआवजा
चाहिए, सस्ता डीज़ल चाहिए। वो तो आपने दिया नहीं। उसक
े
बदले पकड़ा दिए ये तीन कानून। आपक
े ये तीन कानून क्या
कभी भी किसानों या उनक
े नेताओं ने मांगे थे? इन कानूनों को
लाने से पहले आपने किसी भी किसान संगठन से राय-बात
की थी?
मोदी जी: अरे भाई, सभी किसान कहते थे कि मंडी की व्यवस्था
में सुधार की जरुरत है। मैंने सुधार कर दिया। आप अब भी खुश
नहीं हो?
किसान: मेरा सवाल न टालो आप। बीमारी तो थी। इलाज तो
चाहिए था। आज भी दवा चाहिए। लेकिन आप तो जहर का
इंजेक्शन दे रहे हो। मैं पूछ रहा था कि ये तीन कानून वाला
इंजेक्शन क्या कभी किसी किसान संगठन ने माँगा था आपसे?
मोदी जी: हर सुधार क
े लिए मांग का इंतजार नहीं किया जाता।
पिछले बीस साल में कई एक्सपर्ट कमेटी ने यह सिफारिश की
थी। कांग्रेस क
े राज में भी यही योजना बनी थी। कांग्रेस क
े
मैनिफ
े स्टो …
किसान: कांग्रेस ने क्या किया, क्या नहीं किया, मुझे इससे
क्या मतलब जी? कांग्रेस से तंग आकर ही तो मैंने आपको वोट
दिया था। आप ये बताओ कि अगर ये तीन कानून किसानो क
े
लिए सौगात है तो देश का एक भी किसान संगठन इन तीन
कानूनों क
े समर्थन में क्यों नहीं खड़ा?
मोदी जी: वो तो विरोधी हैं। विरोध करना उनकी आदत है।
किसान: विरोधियों की बात छोड़ दो! आप क
े पचास साल
पुराने सहयोगी अकाली दल ने इन तीन कानूनों क
े खिलाफ
आप का साथ क्यों छोड़ दिया? आपका अपना संगठन भारतीय
किसान संघ आज भी खुलकर इन कानूनों का समर्थन क्यों
नहीं कर रहा?
मोदी जी: सब राजनीति है! मैं कह रहा हूँ न, आज किसान
को समझ आये या न आये, इन सुधारों से किसान का फायदा
होगा।
किसान: वाह जी वाह! मतलब किसान तो बच्चा है जिसे अपने
5
4
भले बुरे की समझ नहीं। और आपक
े जिन अफसरों ने एक दिन
भी खेती नहीं की वो समझदार हैं! अच्छा, ऐसा करो। आप मुझे
ही समझा दो कि इन कानूनों से किसान का क्या भला होगा।
मोदी जी: इससे आपको आजादी मिल जाएगी। जहां चाहो
अपनी फसल बेच सकते हो।
किसान: यह आजादी तो मुझे पहले भी थी। गांव में बेचूं, मंडी
में बेचूं, कहीं और ले जाकर बेचूं, ना बेचूं, फ
ें क
ूं । कहने को तो
सारी आज़ादी थी, लेकिन मैं अपनी मंडी से दूर कहां जाऊं?
क
ै से जाऊं? दूसरा राज्य छोड़ो, अपनी फसल बेचने क
े लिए
दूसरे जिले में जाना मेरे बस की बात नहीं है। पिछले साल सब्जी
लगाई थी, रेट इतना गिर गया कि सारी फसल सड़क क
े किनारे
फ
ें कनी पड़ी। ऐसी आजादी का मैं क्या करूं?
मोदी जी: इसीलिए तो हमने व्यवस्था की है कि अब सरकारी
मंडी में फसल बेचना जरूरी नहीं है। अब प्राइवेट मंडी भी खुल
जाएगी। आपका जहां मन है वहां अपनी फसल बेचो।
किसान: सरकारी मंडी से मैं कोई खुश नहीं हूँ। मंडी कर्मचारी
पैसा लेता है। कई आढ़ती किसान का शोषण करते हैं। मंडी
क
े चुनाव में पॉलिटिक्स होती है। अगर आप मंडी व्यवस्था
सुधारो तो मेरे जैसे सब किसान आपक
े साथ हैं। लेकिन आप
तो सुधारने की बजाय इसे बंद करने का इंतजाम कर रहे हो।
आज तो मंडी में जाकर मैं शोर भी मचा लेता हूँ, अपनी बात
सुना लेता हूँ। प्राइवेट मंडी में मेरी कौन सुनेगा? शॉपि
ं ग मॉल
की तरह उनका गार्ड ही मुझे निकाल देगा।
मोदी जी: ये किसने कहा है की मंडी बंद कर रहे हैं? अब तक
कोई मंडी बंद हुई है क्या? हम तो बस एक और विकल्प दे रहे
हैं। कोई जबरदस्ती थोड़े ही है।
किसान: इतना भोला भी नहीं हूँ जी मैं। सरकारी मंडी उसी
तरह बंद होगी जैसे जिओ क
े मोबाइल ने बाकी क
ं पनियों को
बंद कर दिया। जब अंबानी ने जिओ का मोबाइल शुरू किया,
तब कहा था जितना मर्जी कॉल करो, जहां मर्जी करो, हमेशा
फ्री रहेगा। सब लोग जिओ क
े साथ हो लिए, बाकी मोबाइल
की क
ं पनियां ठप्प हो गई। फिर जिओ क
ं पनी ने अपने रेट बढ़ा
दिए। यही खेल प्राइवेट मंडी में होगा। पहले एक-दो सीजन
किसान को सौ-पचास रुपया ज्यादा दे देंगे। इतने में सरकारी
मंडी बैठ जाएगी, आढ़ती वहां अपनी दुकान बंद कर देंगे। फिर
6 7
प्राइवेट मंडी वाले पांच सौ रुपया कम भी देंगे तब भी मजबूरी में
किसान को वहीं जाकर अपनी फसल बेचनी पड़ेगी।मुझे पता
है सरकारी मंडी एक साल में बंद नहीं होगी, उसे दो-तीन साल
लगेंगे। पिछले क
ु छ महीनों में मंडियों की आमदनी कम हो गयी
है। आप बताओ, जब मंडियां बैठ जाएँगी तो सरकारी खरीद
कहाँ होगी? प्राइवेट मंडी में मुझे सरकारी रेट क
ै से मिलेगा?
मोदी जी: अरे भाई, मैंने बार-बार बोला है कि एमएसपी थी,
है और रहेगी। न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था बनी रहेगी।
आप को मुझ पर भरोसा नहीं है?
किसान: भरोसा तो बहुत किया था जी। भरोसा किया था कि
नोटबंदी से भ्रष्टाचार खत्म हो जायेगा। भरोसा तो ये भी किया था
कि 21 दिन में कोरोना भाग जायेगा। थाली भी बजाई थी। भरोसा
अब भी करने को तैयार हूँ, बस इस बार आप लिख कर दे दो।
जैसे फटाफट तीन कानून बना दिए हैं, वैसे ही एक कानून बना
दो कि सरकार जो न्यूनतम समर्थन मूल्य या एमएसपी घोषित
करती है, कम से कम उतना रेट किसान को गारंटी से मिलेगा।
अगर कम मिला तो सरकार भरपाई करेगी। मुझे तो नहीं पता
लेकिन मास्टर जी बता रहे थे कि जब मोदी जी गुजरात क
े
मुख्यमंत्री थे तब 2011 में उन्होंने प्रधानमंत्री मनमोहन सि
ं ह को
चिठ्ठी लिख कर यह मांग की थी कि एमएसपी की कानूनी
गारंटी दे दी जाय। अब तो आप खुद ही प्रधानमंत्री हो, मोदी
जी। किसी दूसरे की छोड़ो, आप अपनी ही बात मान लो ना!
मोदी जी: भाई आप तो पुरानी बातें ले कर बैठ गए। आगे देखो,
इन तीनो कानूनों से आपकी आमदनी बढ़ेगी।
किसान: ये अच्छी याद दिलाई आपने। क
ु छ साल पहले आपने
कहा था न कि किसान की आय छह साल में दुगनी कर देंगे?
ठीक-ठीक तो याद नहीं है, लेकिन वो घोषणा किये पांच साल
तो हो गए ना? कितनी बढ़ी किसान की आमदनी? चलो आप
कोरोना वाले समय को छोड़ दो, इससे पहले जो चार साल हो
गए थे तब तक कितनी आय बढ़ी थी? टीवी पर सुना था कि
चार साल में पूरे देश क
े किसान की आय दोगुना या डयोढ़ा तो
छोड़ो, रुपये में 10 पैसा भी नहीं बढ़ी है। मेरी आय तो एक पैसा
भी नहीं बढ़ी। फिर आप कहोगे पुरानी बात लेकर बैठ गया।
क
ु छ नई बात बताओ आप।
8 9
मोदी जी: और क
ु छ हो न हो, बिचौलिए से तो आपका पीछा
छु ट जाएगा ना?
किसान: वो क
ै से होगा जी? अगर अंबानी या अडाणी प्राइवेट
मंडी खोलेंगे तो वो कौन सा खुद आकर किसान की फसल
खरीदेंगे? वो भी बीच में एजेंट को लगाएंगे। एक की बजाय दो
बिचौलिए हो जाएंगे एक कोई छोटा एजेंट और उसक
े ऊपर
अंबानी या अडाणी। दोनों अपना-अपना हिस्सा लेंगे। फर्क
इतना ही है कि आज आढ़ती जितना कमीशन लेता है, तब
दोनों बिचौलिए मिलाकर उसका दुगना कमीशन काट लेंगे।
आज मैं आढ़ती क
े तख्त पर जाकर बैठ जाता हूं, जरुरत में
उससे पैसा पकड़ लेता हूं। उसकी जगह क
ं पनी हुई तो सारा
टाइम फोन पकड़कर बैठा रहूंगा, सुनता रहूंगा कि अभी सारी
लाइनें व्यस्त हैं। मास्टर जी बता रहे थे कि नए कानून में आपने
किसान और व्यापारी क
े इलावा “थर्ड पार्टी” को जगह दी है। ये
थर्ड पार्टी बिचौलिया नहीं तो और क्या है?
मोदी जी: हमने यह भी व्यवस्था कर दी है कि व्यापारी चाहे तो
अपने गोदाम में जितना मर्जी माल रख सकता है। इससे वह
आपको बेहतर रेट दे पाएगा।
किसान: आप तो खुद व्यापारी रहे हो मोदी जी। आप ही
बताओ, व्यापारी ने दुकान खोली है या धर्मशाला? आप कहते
हो तो मान लेता हूं कि ज्यादा स्टॉक रखकर वह ज्यादा मुनाफा
कमायेगा और चाहे तो किसान को ज्यादा रेट दे सकता है।
लेकिन वो मुझे ज्यादा रेट क्यों देगा? वह अपना गोदाम भरेगा।
जब मेरा फसल बेचने का टाइम आएगा उससे पहले क
ु छ माल
बाजार में उतार देगा ताकि रेट गिर जाए। और जब सब किसान
फसल बेच लेंगे तब जमाखोरी कर लेगा ताकि भाव चढ़ जाए।
मेरे लिए फसल का रेट गिर जायेगा, लेकिन गरीब खरीददार
को मंहगा पड़ेगा। किसान और मजदूर दोनों को ही मार पड़ेगी,
बड़ा व्यापारी मालामाल हो जायेगा। वैसे भी मंडी में जब किसान
को रेट देने की बात आती है तो सब व्यापारी मिलीभगत कर
लेते हैं और बोली चढ़ने नहीं देते।
मोदी जी: ऐसा न हो उसक
े लिए हमने कॉन्ट्रैक्ट की खेती की
व्यवस्था भी कर दी है। फसल बुवाई से पहले ही आप क
ं पनी
से कॉन्ट्रैक्ट कर लो कि कितने भाव में कितनी फसल बेचोगे।
किसान: मैंने तो कभी ऐसा कॉन्ट्रैक्ट नहीं किया लेकिन उसकी
कहानी सुनी है। पंजाब में पेप्सी क
ं पनी ने आलू चिप्स क
े लिए
10 11
आलू क
े किसानों से 6 रुपये किलो क
े भाव से कॉन्ट्रैक्ट किया
था। पहले साल मंडी में दाम 8 रुपये किलो चल रहा था तो
क
ं पनी ने कांट्रेक्ट दिखाकर किसानों से 6 रुपये किलो में
खरीदा। अगले साल जब मंडी में भाव गिरकर 4 रुपये किलो
हो गया तो क
ं पनी मुकर गयी। बोली तुम्हारे आलू की क्वालिटी
ठीक नहीं है। किसान बेचारा क
ं पनी क
े वकीलों से कहां जाकर
लड़ता? अब आप ही बताओ, इतने लम्बा चौड़े कॉन्ट्रैक्ट मैं
क्या समझूंगा? वकीलों की फीस कौन देगा? आपक
े कॉन्ट्रैक्ट
से तो हमारा मुँहज़बानी ठेका और बंटाई का तरीका ही अच्छा है।
मोदी जी: आपको सारी ग़लतियाँ हमारी ही नज़र आती है?
पिछली सरकारों क
े राज में क्या किसान खुश थे?
किसान: अगर किसान तब खुश होते तो आज आप इस क
ु र्सी
पर बैठे न होते। किसान दुखी थे इसीलिये तो आपकी बातों पर
भरोसा किया।पिछली सरकारों क
े निकम्मेपन क
े चलते हट्टा-
कट्टा किसान हस्पताल में पहुंच गया। आपकी सरकार ने उसे
आईसीयू तक पंहुचा दिया। अब आप उसकी ऑक्सीजन हटाने
पर तुले हो। अब भी मन नहीं भरा आपका। पराली जलाने को
रोकने क
े लिए आपने किसानो पर एक करोड़ रुपये क
े जुर्माने
और पांच साल की सजा का कानून भी बना दिया है। मुझे पता
लगा की किसान की सस्ती बिजली बंद करने का कानून भी
आप बना चुक
े हो।
मोदी जी: हो सकता है इन कानूनों में कोई कमी रह गयी हो।
आप बताओ इनमे क्या बदलाव चाहिए? हम संशोधन क
े लिए
तैयार हैं। तीनों कानून रद्द ही हों, यह जिद क्यों?
किसान: अच्छा मजाक करते हो आप। मुझे चाहिए थी पैंट, आपने
बना दी सलवार, और अब कहते हो इसमें कांट-छांट करवा लो।
संशोधन तो तब होता है जब कानून की मूल भावना सही हो, कोई
छोटी-मोटी कसर रह गयी हो। ये तीनों कानून तो किसान को जो
चाहिए उसक
े उलट हैं। इनमे संशोधन से क
ै से काम चलेगा? वैसे भी
अगर ये मेरे लिए सौगात थी और मुझे पसंद नहीं है तो वापिस क्यों
नहीं कर सकता मैं? सौगात में सौदेबाजी की क्या जरूरत? क
ु छ भी
संशोधन करवा लो बस कानून रद्द नहीं हों, यह जिद क्यों?
मोदी जी: हमने तो उसे भी छोड़ दिया। हमने तो कह दिया कि डेढ़
साल क
े लिए तीनों कानूनों पर रोक लगा देते हैं। इसमें भी आप
नहीं मान रहे?
12 13
किसान: अगर रोक लगाने को तैयार हो तो मतलब क
ु छ
गड़बड़ है न? अगर गड़बड़ है तो सिर्फ रोक क्यों लगा
रहे हो, रद्द क्यों नहीं कर रहे? डेढ़ साल का ऐसा क्या
मुहूर्त निकला है? अगर आपको लगता है कि डेढ़ साल
में किसान आपकी बात मान जायेंगे तो अभी रद्द कर दो,
डेढ़ साल बाद किसानो से पूछकर नया कानून ले आना।
इसे आप अपनी नाक का मामला क्यों बना रहे हो?
मोदी जी: मैं तुम्हे क
ै से समझाऊं? ये नेता लोग तुम्हे
बहका रहे हैं, डरा रहे हैं, गुमराह कर रहे हैं।
किसान: सच बोलूं प्रधानमंत्री जी? वो नहीं, आप और
आपक
े दरबारी बहका रहे हो इतने महीनों से। कभी
कहते हो मैं अन्नदाता हूँ, कभी मुझे आतंकवादी बताते
हो। कभी कहते हो हमारा आंदोलन पवित्र है, कभी हमें
देशद्रोही बताते हो। कहते हो बातचीत क
े दरवाजे खुले
हैं, लेकिन किसानों क
े खिलाफ क
े स बनाते हो, रास्ते में
कील और तार बिछाते हो।आपका मन खुला नहीं है।
मैंने सुना था बड़े नेता बंद रास्तों को खोलते हैं। पता नहीं
क्यों आपको चलती हुई चीजों को बंद करने का शौक
है। पहले नोटबंदी, फिर देशबन्दी और अब किसान की
घेरा बंदी।
देखो मोदी जी, ये जो मंडी हैं न, ये समझो एक छप्पर है
मेरे सर पर। छप्पर टूटा है, इसमें पानी टपकता है, इसकी
मरम्मत की जरूरत है। लेकिन आप तो छप्पर ही हटा
रहे हो। और कहते हो इससे मुझे खुला आकाश दिखाई
देगा, रात को चाँद-तारे दिखाई देंगे! बिना छप्पर क
े
जीने की आज़ादी मुझे नहीं चाहिए ...
किसान की नज़र आकाश से नीचे उतरी तो देखा कि
मोदी जी झोला उठाकर चले जा रहे थे।
वो भी उठ खड़ा हुआ, किसान आंदोलन में शामिल होने
क
े लिए।
14 15
किसान विरोधी कानूनों का पूरा सच
सरकारी नाम: आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम 2020
असली काम: जमाखोरी और कालाबाजारी पर रोक/टोक बंद
फायदा: अडाणी, बड़े स्टॉकिस्ट, थोक व्यापारी व एक्सपोर्ट क
ं पनी को
नुकसान: छोटे किसान को, गरीब उपभोक्ता को
कानून का ब्यौरा: इस कानून से 1955 क
े जमाखोरी रोकने वाले कानून
में संशोधन किया गया है। पहले जरूरत पड़ने पर सरकार खाद्य पदार्थों
जैसे अनाज, दाल, तेल, बीज, आलू, प्याज आदि को एक हद से ज्यादा
जमा स्टॉक इकट्ठा करने पर पाबंदी लगा सकती थी। अब यह पाबंदी
लगभग हटा दी गई है। सिर्फ प्राक
ृ तिक आपदा आदि में पाबंदी लग
सकती है, या अगर अनाज का दाम डेढ़ गुना और सब्जी दुगना हो जाए।
एक्सपोर्ट करने वालों पर कोई पाबंदी नहीं लग सकती।
सरकारी तर्क :
 बड़ी क
ं पनियां अब खुलकर वेयरहाउस और कोल्ड स्टोर बनाएगी
 खाद्य पदार्थों का भंडारण बढ़ेगा, बर्बादी घटेगी
 व्यापारी ज्यादा कमाएगा तो किसानों को भी बेहतर भाव देगा
पूरा सच:
 व्यापारी तो ज्यादा कमाएगा, लेकिन किसान को बेहतर भाव नहीं
देगा।
 असीमित स्टॉक रखने वाला व्यापारी बाजार से खेलेगा। फसल आने
से पहले भाव गिरा देगा और उपभोक्ता को बेचने से पहले दाम बढ़ा देगा।
 वेयरहाउस और कोल्ड स्टोर में पैसा लगाने से से सरकार हाथ खींच
लेगी। सुविधा वहां बनेगी जहां क
ं पनी को मुनाफा मिलेगा, वहां नहीं जहां
किसान को जरूरत है। छोटे किसान को सबसे ज्यादा नुकसान होगा।
 नए नियमों क
े तहत सरकार को स्टॉक और बाजार की सूचना ही
नहीं होगी। जरूरत पड़ने पर भी सरकार दखल नहीं दे पाएगी।
 जब स्टॉक की लिमिट हटाने से किसान को फायदा हो सकता है तब
नहीं हटाई जाएगी। इस साल आलू और प्याज में यही हुआ। लेकिन जब
व्यापारी को फायदा होगा तब लिमिट हटा ली जाएगी।
 एक्सपोर्ट की छू ट क
े नाम पर अडाणी जैसे व्यापारियों पर कभी भी
लिमिट नहीं लग सक
े गी।
 यह कानून आने से पहले ही अडाणी एग्रो लॉजिस्टिक क
ं पनी
ने बड़े-बड़े गोदाम (साइलो) बनाने शुरू कर दिए थे। लॉकडाउन क
े
समय क
ं पनी को हरियाणा सरकार ने सी एल यू की अनुमति दी थी
असली खेल यही है।
जमाखोरी छू ट कानून
16 17
मंडी बंदी कानून
सरकारी नाम: क
ृ षक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और
सरलीकरण) अधिनियम 2020
असली काम: सरकारी मंडी को धीरे धीरे ख़त्म करना, ताकि सरकारी
खरीद क
े सरदर्द से बचा जा सक
े
फायदा: प्राइवेट मंडी क
े मालिकों और उनक
े कमीशन एजेंट को
नुक़सान: सरकारी मंडी पर निर्भर किसानों और आढ़तियों को
कानून का ब्यौरा: अब तक किसान की फसल को व्यापारी सिर्फ सरकारी
मंडी (एपीएमसी) में ही खरीद-बेच सकता था। अब सरकारी मंडी क
े बाहर
कहीं भी व्यापार हो सक
े गा। प्राइवेट मंडी भी खुल सक
े गी। दोनो मंडियों पर
दो अलग तरह क
े नियम कानून लागू होंगे। सरकारी मंडी क
े बाहर होने वाले
व्यापार पर न तो कोई फीस या टैक्स लगेगा, न ही रजिस्ट्रेशन या रिकॉर्ड
िं ग
होगी, न ही सरकार उसकी निगरानी करेगी।
सरकारी तर्क :
 किसान को पहली बार फसल जहां मर्जी बेचने की आजादी होगी।
 किसान को एक से ज्यादा विकल्प मिलेगा जिससे वह बाजार में बेहतर
भाव वसूल कर सक
े गा।
 किसान बिचौलियों क
े चंगुल से मुक्त हो जाएगा।
 प्राइवेट मंडी का मुकाबला होने से सरकारी मंडी में फीस घटेगी,
कमीशन कम होगा, भ्रष्टाचार कम होगा।
पूरा सच:
 संविधान क
े अनुसार क
ें द्र सरकार क
ृ षि व क
ृ षि मंडियों पर कानून बना
ही नहीं सकती, यह अधिकार सिर्फ़ राज्य सरकारों क
े पास है।
 व्यवहार में किसान को फसल जहां चाहे वहां बेचने की आजादी हमेशा
रही है। आज भी 70% फसल सरकारी मंडी क
े बाहर बिकती है।
 किसान को मंडी से आजादी नहीं चाहिए। उसे जितनी आज हैं उनसे
ज्यादा व बेहतर मंडियां चाहिए जिनकी निगरानी अच्छे तरीक
े से हो।
 पहले एक-दो साल प्राइवेट मंडी में सरकारी मंडी से थोड़ा अधिक
दाम दिया जाएगा। इससे सरकारी मंडी बैठ जाएगी। फिर प्राइवेट मंडी क
े
व्यापारी किसान को मनमाने तरीक
े से लूटेंगे।
 बिहार में 2006 में सरकारी मंडिया खत्म कर दी गई थी। आज बिहार क
े
किसान को धान, मक्का, गेहूं का दाम बाकी देश से बहुत कम मिलता है।
देशभर क
े किसान को गेहूं, धान, मक्का का जो भाव मिलता है बिहार क
े
किसान को उससे बहुत कम मिलता है।
 सरकारी मंडी क
े बाहर एक नहीं दो बिचौलिए होंगे। प्राइवेट मंडी
खोलने वाली क
ं पनी भी अपने एजेंट नियुक्त करेगी। वह भी अपना कमीशन
लेंगे। ऊपर से प्राइवेट मंडी का मालिक भी अपना कट लेगा।
 सरकारी मंडी की फीस कम होने से सरकार क
े पास ग्रामीण इलाकों में
सड़क और अन्य सुविधाएं बनाने क
े लिए पैसे नहीं बचेंगे।
19
18
बंधुआ किसान कानून
सरकारी नाम: क
ृ षि (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत अश्वासन और
क
ृ षि सेवा करार अधिनियम, 2020
असली काम: बड़ी क
ं पनियों को सीलि
ं ग क
े कानून से बचाकर बड़े पैमाने
पर खेती का रास्ता साफ़ करना
फायदा: रिलायंस जैसी बड़ी क
ं पनियों और वकीलों को
नुकसान: अनपढ़ या भोले किसानों को
कानून का ब्यौरा: किसान और क
ं पनी पांच साल तक का कॉन्ट्रैक्ट कर
सक
ें गे। कॉन्ट्रैक्ट में पहले से लिख दिया जाएगा कि क
ं पनी किसान की
कौन सी फसल, किस क्वालिटी की, कितने दाम पर खरीदेगी। अगर दोनों
में विवाद होता है तो फ
ै सला एसडीएम या कलेक्टर करेंगे।
सरकारी तर्क :
 किसान कॉन्ट्रैक्ट तभी करेगा अगर उसे अपना फायदा दिखाई देगा।
 किसान और क
ं पनी दोनों भाव क
े उतार-चढ़ाव क
े जोखिम से बचेंगे।
 कॉन्ट्रैक्ट क
े लिए किसान इकट्ठे होकर समूह बना लेंगे। इससे सहकारी
खेती बढ़ेगी।
 सरकार कानून में संशोधन कर देगी ताकि कम्पनी ज़मीन पर लोन ना
ले सक
े , किसान की क
ु र्की ना हो सक
े ।
पूरा सच:
 कॉन्ट्रैक्ट की कानूनी बारीकियां और पेंच समझना किसान क
े बस की
बात नहीं है।
 क
ं पनी क
े पास ज्यादा सूचना होगी, बेहतर वकील होंगे, ज्यादा ताकत
होगी। इसलिए कॉन्ट्रैक्ट में किसान क
े ठगे जाने की संभावना है।अगर
कम्पनी को नुक़सान होता दिखा तो वो कॉंट्रैक्ट से हाथ झाड़ लेगी।
 पंजाब क
े किसानों क
े साथ यही हुआ। जब मंडी में आलू क
े
दाम कॉन्ट्रैक्ट से ज्यादा मिल रहे थे तब तो क
ं पनी ने कॉन्ट्रैक्ट वाले रेट
पर खरीदा। लेकिन जब दाम कम हो गए तो क
ं पनी ने आलू की क्वालिटी
खराब होने का बहाना लगाकर हाथ झाड़ लिए।
 कॉन्ट्रैक्ट में किसान को न्यूनतम मूल्य की गारंटी नहीं है।
 कम्पनी को अधिकार है की वो किसान से अपना पूरा निवेश
वसूले, चाहे किसान को अपना घर और ज़मीन बेचनी पड़े। आमतौर पर
कांट्रेक्ट महंगी फसलों का होता है जिसमें कम्पनी क
े मुकरने पर किसान
को भारी नुकसान होता है, जमीन बेचने की नौबत आ जाती है।
 सहकारी खेती को धक्का लगेगा, क्योंकि इस कानून में किसानों क
े
संगठन और क
ं पनी को एक बराबर कर दिया है।
 कॉन्ट्रैक्ट क
े बहाने चोर दरवाजे से क
ं पनियां खेती की जमीन पर धीरे-
धीरे कब्जा शुरू कर सकती हैं।
20 21
अपराधी किसान कानून
सरकारी नाम: राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और इससे जुड़े क्षेत्रों में वायु
गुणवत्ता प्रबंधन क
े लिए आयोग अध्यादेश, 2020
असली काम: वायु प्रदुषण रोकने में सरकारों क
े निकम्मेपन से जनता
का ध्यान हटा कर किसान पर दोष डाल देना
फायदा: दिल्ली क
े अमीरों का, प्रदूषण कमीशन इंस्पेक्टरों का
नुकसान: दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान ,उत्तर प्रदेश क
े किसानों का
कानून का ब्यौरा: दिल्ली और एनसीआर इलाक
े में वायु प्रदूषण को
रोकने क
े लिए क
ें द्र सरकार ने एक कमीशन बनाया है। यह कमीशन
दिल्ली,हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में कहीं भी प्रदूषण
कम करने क
े लिए कोई भी आदेश दे सक
े गा। आदेश न मानने पर
एक करोड़ रुपए तक का जुर्माना और पांच साल तक की सजा होगी।
अपील सिर्फ एनजीटी में होगी।
सरकारी तर्क : दिल्ली और आसपास क
े इलाकों की हवा में भयानक
प्रदूषण को कम करने क
े लिए सख्ती से किसानों द्वारा पराली जलाना
रोकना पड़ेगा।
पूरा सच: वायु प्रदूषण क
े सबसे बड़े स्रोत उद्योग, वाहन व भवन निर्माण
हैं, पराली का धुआं नहीं। इतनी कड़ी सजा देने की ताकत कमीशन को
देने से दलाल व इंस्पेक्टर किसान को हमेशा परेशान करेंगे।
बिजली झटका कानून
सरकारी नाम: विद्युत अधिनियम (संशोधन) विधेयक, 2020
असली काम: बिजली क
े वितरण का धंधा प्राइवेट क
ं पनियों को सौंपना
फायदा: बिजली वितरण क
े बिज़नेस में घुसने को बेताब प्राइवेट
क
ं पनियों को
नुकसान: सस्ती बिजली पाने वाले किसान और शहरी गरीब को,
सरकारी बिजली क
ं पनियों को
कानून का ब्यौरा: बिजली क
े बिजनेस में सबसे ज्यादा मुनाफा वितरण
यानी ग्राहकों तक बिजली पहुंचाने क
े काम में है। यह प्रस्तावित कानून
अभी संसद में पेश नहीं हुआ है, लेकिन अगर यह कानून बन गया तो
बिजली वितरण में प्राइवेट क
ं पनियों क
े घुसने का रास्ता साफ़ हो
जायेगा। साथ में उन्हें गरीबों, किसानों और गाँव को सस्ती बिजली देने
क
े झंझट से मुक्ति मिल जाएगी। राज्य सरकारों पर पाबन्दी लग जाएगी
कि वो अपनी जेब से भी सस्ती या मुफ्त बिजली नहीं दे सक
ें गी।
सरकारी तर्क : सरकारी बिजली बोर्ड और कम्पनियो क
े घाटे और
बिजली की चोरी को रोकने क
े लिए यह जरूरी है।
पूरा सच: यह राज्य सरकार का फ
ै सला होना चाहिए, क
ें द्र सरकार
का नहीं। इससे किसान का खर्चा और बढ़ेगा। गाँव-कस्बे और गरीब
बस्तियों में बिजली की सप्लाई खराब होगी।
22 23
एमएसपी गारंटी कानून
प्रस्तावित नाम: क
ृ षि उत्पादों का न्यूनतम समर्थन मूल्य गारंटी विधेयक,
2021
असली काम: किसान को कानूनी गारंटी देना कि उसे हर फसल का कम
से कम एमएसपी क
े बराबर दाम मिलेगा।
फायदा: किसान को, देश की अर्थव्यवस्था को
नुकसान: किसान को लूटने वालों को
कानून का ब्यौरा:
पिछले 54 साल से क
ें द्र सरकार स्थाई तौर पर क
ु छ फसलों का न्यूनतम
समर्थन मूल्य घोषित कर देती है, लेकिन लेकिन इसकी कोई व्यवस्था नहीं
करती कि किसान को कम से कम उतना मूल्य मिले। इसलिए किसान
चाहते हैं कि ऐसा कानून हो कि एक स्वतंत्र और कानूनी दर्जा प्राप्त कमीशन
बने जो हर फसल की एमएसपी को स्वामीनाथन कमीशन क
े अनुसार
संपूर्ण लागत का डेढ़ गुना पर तय करे। सरकार द्वारा घोषित एमएसपी
किसान को सचमुच मिले, गारंटी से मिले, इसक
े लिए सरकारी खरीद में
दाल, तिलहन और मोटे अनाज को भी शामिल किया जाए। सरकार देशी
और विदेशी बाजार में दखल देकर किसान को एमएसपी दिलाए। फसल
एमएसपी से नीचे बिकने पर सरकार किसान की भरपाई करे। मंडी में बोली
एमएसपी से ही शुरू हो।
सरकारी तर्क :
 सारी फसलें खरीदना सरकार क
े लिए संभव नहीं है। इस भंडार का
सरकार क्या करेगी? खराब क्वालिटी को क
ै से खरीदेगी?
 किसान को मुआवजा देने क
े लिएजितना पैसा चाहिए वह सरकार क
े
पास नहीं है। सरकार का सारा बजट इसी में खर्च हो जाएगा।
 न्यूनतम रेट फिक्स कर देने से बाजार बिगड़ जाएगा। मांग-आपूर्
ति का
संतुलन नहीं बचेगा।
पूरा सच:
 सरकार को सभी फसलें पूरी खरीदना जरूरी नहीं है। इस कानून में
किसान को फसल का रेट दिलाने क
े कई और तरीक
े सुझाए गए हैं।
जैसे बाजार में सीमित दखल(मार्
के ट इंटरवेंशन), आयात-निर्यात नीति में
बदलाव, भाव कम मिलते पर भरपाई और एमएसपी से नीचे बोली पर
कानूनी रोक।
 अगर सरकार सचमुच चाहे तो बजट में पैसा निकल आएगा वर्तमान
एमएसपी दिलाने क
े लिए 50 हजार करोड़ रु खर्च होगा। स्वामीनाथन
कमीशन क
े हिसाब से संपूर्ण लागत की डेढ़ गुना एमएसपी दिलाने क
े लिए
लगभग तीन लाख करोड़ रुपए खर्च होगा। सरकार का बजट 34 लाख
करोड़ रुपए है।
 अगर बाजार व्यवस्था में उपभोक्ताओं क
े लिए एमआरपी फिक्स हो
सकती है, मजदूर क
े लिए न्यूनतम मजदूरी तय हो सकती है, तो किसान क
े
लिए एमएसपी क्यों नहीं?
 सरकारी खरीद वर्तमान FAQ(फ
े यर एंड एवरेज क्वालिटी) मानक क
ें द्र
क
े अनुसार होगी। खराब क्वालिटी होने पर रेट में कटौती होती है।
24
देखो मोदी जी की अक्लमंदी
पहले नोटबंदी, फिर देशबन्दी
अब किसान की घेराबंदी
बाजार अडाणी-अम्बानी का, किसान की मंडी बंद
मंडी नहीं रहेगी तो फसल की सरकारी खरीद बंद
गेहूं धान की खरीद बंद तो राशन की दुकान बंद
जमाखोरी और कालाबाजारी पर हर रोकटोक बंद
क
ं पनियों से कॉन्ट्रैक्ट में किसान की किस्मत बंद
खेती क
े लिए फ्री या सस्ती बिजली मिलनी बंद
पराली क
े बहाने किसान पांच साल जेल में बंद
किसान ने भी कर ली मुठ्ठी बंद
जात-बिरादरी और पार्टीबाजी बंद
किसान विरोधी नेताओं का वोट बंद
ऐसी सरकारों का बोरिया-बिस्तर बंद
फसल
वर्तमान
एमएसपी
(रुपये)
स्वामीनाथन
एमएसपी
(रुपये)
गेहूं 1975 2201
धान 1868 2501
सरसों 4650 5205
चना 5100 6018
जौ 1600 2106
ज्वार 2620 3590
रागी 3295 4145
मसूर 5100 6306
बाजरा 2150 2333
फसल
वर्तमान
एमएसपी
(रुपये)
स्वामीनाथन
एमएसपी
(रुपये)
मक्का 1850 2409
अरहर 6000 8196
मूंग 7196 9434
उड़द 6000 8355
मूंगफली 5275 6768
सूरजमुखी 5885 7619
सोयाबीन 3880 5270
कपास 5515 7403
तिल 6855 9323
किसान कितने भाव की गारंटी चाहते हैं:
नोट: “वर्तमान एमएसपी” का मतलब भारत सरकार द्वारा पिछले सीजन (खरीफ
2020-21 और रबी 2021-22) में घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य। “स्वामीनाथन
एमएसपी” का मतलब स्वामीनाथन कमीशन द्वारा सुझाए गए फार्मूले यानी संपूर्ण
लागत का डेढ़ गुना (C2+50%) क
े हिसाब से एमएसपी कितनी होनी चाहिए।
स्रोत: CACP, भारत सरकार, की नवीनतम खरीफ और रबी की रपट।
जय किसान आंदोलन
मिस्ड कॉल करें
जुड़ने क
े लिए
मुद्रण: सहारा प्रिं टर, दिल्ली
‘जय किसान आंदोलन’ अखिल भारतीय गैर चुनावी
किसान संगठन है। वर्ष 2015 में स्थापित यह संगठन
फिलहाल हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश,
पश्चिम बंगाल, ओडिशा और कर्नाटका में सक्रिय है
और अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति
(AIKSCC) का घटक संगठन है।
844 889 3011
JaiKisanAndolan @_jaikisan jkanational@gmail.com
हेल्पलाइन : 7206855400
स्वराज अभियान प्रकाशन

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  • 1. 1 किसान आंदोलन का लेखक : योगेंद्र यादव गुटका  किसान आंदोलन से जुड़े हर सवाल जवाब  हर किसान विरोधी कानून का पूरा सच  सरकारी और दरबारी दुष्प्रचार का भंडाफोड़
  • 2. एक दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को एक किसान मिल गया। वह बोले: आप “मन की बात” सुनते हैं? किसान मुंहफट था, बोला: आप बड़े आदमी हो। आपक े मन की बात तो हर महीने सुनता हूं। आज एक किसान क े मन की बात भी तो सुन लो। दोनो में बात शुरू हो गई। मोदी जी की किसान से क्या बात हुई? मोदी जी: आपको पता है, हमारी सरकार किसानों क े लिए ऐतिहासिक कदम उठा रही है? किसान: अब क्या बंद करने जा रहे हो जी? बुरा न मानना, आप जब-जब किसी बात को ऐतिहासिक बोलते हो तो मुझे डर लगता है। पहले ऐतिहासिक नोटबंदी की, फिर कोरोना में ऐतिहासिक देशबंदी, अब किसानो का क्या बंद करोगे? मोदी जी: मैं तो उन तीन ऐतिहासिक कानूनों की बात कर रहा था जो सरकार किसानों क े लिए लेकर आई है। यह किसानों क े लिए हमारी सौगात है। किसान: सुनो जी, सौगात या उपहार वो होती है, जो किसी लेखक परिचय: योगेंद्र यादव ‘संयुक्त किसान मोर्चा’ की सात सदस्यीय राष्ट्रीय समन्वय समिति क े सदस्य। वर्ष 2015 जय किसान आंदोलन क े संस्थापक। पिछ्ले छह वर्ष से किसान आंदोलन में सक्रिय: 2015 में भूमि अधिग्रहण अध्यादेश क े विरूद्ध ट्रैक्टर मार्च, 2015 में देशव्यापी सूखे पर संवेदना यात्रा, 2015-16 में सूखे क े दौरान किसान क े अधिकार क े लिए सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा, 2016 में मराठवाड़ा और बुंदेलखंड में जल हल पदयात्रा, 2017 में मंदसौर गोली कांड क े बाद अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति की स्थापना में भूमिका, 2017 में देशभर में किसान मुक्ति यात्रा, 2018-19 में “किसान संसद” क े आयोजन से जुड़ाव, 2018- 19 में एमएसपी सत्याग्रह और हरियाणा में सरसों और बाजरा खरीद आंदोलन। इस पुस्तिका का कोई कॉपीराइट नहीं है। किसान आंदोलन क े वास्ते इसको छापने और बांटने क े लिए किसी इजाजत की जरूरत नहीं है। सहयोग राशि: 10 रुपये (या आप जितना दे सक ें ) 1
  • 3. 2 3 ने मांगी हो, या उसकी ज़रुरत हो, या उसक े किसी काम की हो। आप ही बताओ। देश में लॉकडाउन था। किसान कह रहा था मुझे फसल का पूरा दाम चाहिए, नुकसान का मुआवजा चाहिए, सस्ता डीज़ल चाहिए। वो तो आपने दिया नहीं। उसक े बदले पकड़ा दिए ये तीन कानून। आपक े ये तीन कानून क्या कभी भी किसानों या उनक े नेताओं ने मांगे थे? इन कानूनों को लाने से पहले आपने किसी भी किसान संगठन से राय-बात की थी? मोदी जी: अरे भाई, सभी किसान कहते थे कि मंडी की व्यवस्था में सुधार की जरुरत है। मैंने सुधार कर दिया। आप अब भी खुश नहीं हो? किसान: मेरा सवाल न टालो आप। बीमारी तो थी। इलाज तो चाहिए था। आज भी दवा चाहिए। लेकिन आप तो जहर का इंजेक्शन दे रहे हो। मैं पूछ रहा था कि ये तीन कानून वाला इंजेक्शन क्या कभी किसी किसान संगठन ने माँगा था आपसे? मोदी जी: हर सुधार क े लिए मांग का इंतजार नहीं किया जाता। पिछले बीस साल में कई एक्सपर्ट कमेटी ने यह सिफारिश की थी। कांग्रेस क े राज में भी यही योजना बनी थी। कांग्रेस क े मैनिफ े स्टो … किसान: कांग्रेस ने क्या किया, क्या नहीं किया, मुझे इससे क्या मतलब जी? कांग्रेस से तंग आकर ही तो मैंने आपको वोट दिया था। आप ये बताओ कि अगर ये तीन कानून किसानो क े लिए सौगात है तो देश का एक भी किसान संगठन इन तीन कानूनों क े समर्थन में क्यों नहीं खड़ा? मोदी जी: वो तो विरोधी हैं। विरोध करना उनकी आदत है। किसान: विरोधियों की बात छोड़ दो! आप क े पचास साल पुराने सहयोगी अकाली दल ने इन तीन कानूनों क े खिलाफ आप का साथ क्यों छोड़ दिया? आपका अपना संगठन भारतीय किसान संघ आज भी खुलकर इन कानूनों का समर्थन क्यों नहीं कर रहा? मोदी जी: सब राजनीति है! मैं कह रहा हूँ न, आज किसान को समझ आये या न आये, इन सुधारों से किसान का फायदा होगा। किसान: वाह जी वाह! मतलब किसान तो बच्चा है जिसे अपने
  • 4. 5 4 भले बुरे की समझ नहीं। और आपक े जिन अफसरों ने एक दिन भी खेती नहीं की वो समझदार हैं! अच्छा, ऐसा करो। आप मुझे ही समझा दो कि इन कानूनों से किसान का क्या भला होगा। मोदी जी: इससे आपको आजादी मिल जाएगी। जहां चाहो अपनी फसल बेच सकते हो। किसान: यह आजादी तो मुझे पहले भी थी। गांव में बेचूं, मंडी में बेचूं, कहीं और ले जाकर बेचूं, ना बेचूं, फ ें क ूं । कहने को तो सारी आज़ादी थी, लेकिन मैं अपनी मंडी से दूर कहां जाऊं? क ै से जाऊं? दूसरा राज्य छोड़ो, अपनी फसल बेचने क े लिए दूसरे जिले में जाना मेरे बस की बात नहीं है। पिछले साल सब्जी लगाई थी, रेट इतना गिर गया कि सारी फसल सड़क क े किनारे फ ें कनी पड़ी। ऐसी आजादी का मैं क्या करूं? मोदी जी: इसीलिए तो हमने व्यवस्था की है कि अब सरकारी मंडी में फसल बेचना जरूरी नहीं है। अब प्राइवेट मंडी भी खुल जाएगी। आपका जहां मन है वहां अपनी फसल बेचो। किसान: सरकारी मंडी से मैं कोई खुश नहीं हूँ। मंडी कर्मचारी पैसा लेता है। कई आढ़ती किसान का शोषण करते हैं। मंडी क े चुनाव में पॉलिटिक्स होती है। अगर आप मंडी व्यवस्था सुधारो तो मेरे जैसे सब किसान आपक े साथ हैं। लेकिन आप तो सुधारने की बजाय इसे बंद करने का इंतजाम कर रहे हो। आज तो मंडी में जाकर मैं शोर भी मचा लेता हूँ, अपनी बात सुना लेता हूँ। प्राइवेट मंडी में मेरी कौन सुनेगा? शॉपि ं ग मॉल की तरह उनका गार्ड ही मुझे निकाल देगा। मोदी जी: ये किसने कहा है की मंडी बंद कर रहे हैं? अब तक कोई मंडी बंद हुई है क्या? हम तो बस एक और विकल्प दे रहे हैं। कोई जबरदस्ती थोड़े ही है। किसान: इतना भोला भी नहीं हूँ जी मैं। सरकारी मंडी उसी तरह बंद होगी जैसे जिओ क े मोबाइल ने बाकी क ं पनियों को बंद कर दिया। जब अंबानी ने जिओ का मोबाइल शुरू किया, तब कहा था जितना मर्जी कॉल करो, जहां मर्जी करो, हमेशा फ्री रहेगा। सब लोग जिओ क े साथ हो लिए, बाकी मोबाइल की क ं पनियां ठप्प हो गई। फिर जिओ क ं पनी ने अपने रेट बढ़ा दिए। यही खेल प्राइवेट मंडी में होगा। पहले एक-दो सीजन किसान को सौ-पचास रुपया ज्यादा दे देंगे। इतने में सरकारी मंडी बैठ जाएगी, आढ़ती वहां अपनी दुकान बंद कर देंगे। फिर
  • 5. 6 7 प्राइवेट मंडी वाले पांच सौ रुपया कम भी देंगे तब भी मजबूरी में किसान को वहीं जाकर अपनी फसल बेचनी पड़ेगी।मुझे पता है सरकारी मंडी एक साल में बंद नहीं होगी, उसे दो-तीन साल लगेंगे। पिछले क ु छ महीनों में मंडियों की आमदनी कम हो गयी है। आप बताओ, जब मंडियां बैठ जाएँगी तो सरकारी खरीद कहाँ होगी? प्राइवेट मंडी में मुझे सरकारी रेट क ै से मिलेगा? मोदी जी: अरे भाई, मैंने बार-बार बोला है कि एमएसपी थी, है और रहेगी। न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था बनी रहेगी। आप को मुझ पर भरोसा नहीं है? किसान: भरोसा तो बहुत किया था जी। भरोसा किया था कि नोटबंदी से भ्रष्टाचार खत्म हो जायेगा। भरोसा तो ये भी किया था कि 21 दिन में कोरोना भाग जायेगा। थाली भी बजाई थी। भरोसा अब भी करने को तैयार हूँ, बस इस बार आप लिख कर दे दो। जैसे फटाफट तीन कानून बना दिए हैं, वैसे ही एक कानून बना दो कि सरकार जो न्यूनतम समर्थन मूल्य या एमएसपी घोषित करती है, कम से कम उतना रेट किसान को गारंटी से मिलेगा। अगर कम मिला तो सरकार भरपाई करेगी। मुझे तो नहीं पता लेकिन मास्टर जी बता रहे थे कि जब मोदी जी गुजरात क े मुख्यमंत्री थे तब 2011 में उन्होंने प्रधानमंत्री मनमोहन सि ं ह को चिठ्ठी लिख कर यह मांग की थी कि एमएसपी की कानूनी गारंटी दे दी जाय। अब तो आप खुद ही प्रधानमंत्री हो, मोदी जी। किसी दूसरे की छोड़ो, आप अपनी ही बात मान लो ना! मोदी जी: भाई आप तो पुरानी बातें ले कर बैठ गए। आगे देखो, इन तीनो कानूनों से आपकी आमदनी बढ़ेगी। किसान: ये अच्छी याद दिलाई आपने। क ु छ साल पहले आपने कहा था न कि किसान की आय छह साल में दुगनी कर देंगे? ठीक-ठीक तो याद नहीं है, लेकिन वो घोषणा किये पांच साल तो हो गए ना? कितनी बढ़ी किसान की आमदनी? चलो आप कोरोना वाले समय को छोड़ दो, इससे पहले जो चार साल हो गए थे तब तक कितनी आय बढ़ी थी? टीवी पर सुना था कि चार साल में पूरे देश क े किसान की आय दोगुना या डयोढ़ा तो छोड़ो, रुपये में 10 पैसा भी नहीं बढ़ी है। मेरी आय तो एक पैसा भी नहीं बढ़ी। फिर आप कहोगे पुरानी बात लेकर बैठ गया। क ु छ नई बात बताओ आप।
  • 6. 8 9 मोदी जी: और क ु छ हो न हो, बिचौलिए से तो आपका पीछा छु ट जाएगा ना? किसान: वो क ै से होगा जी? अगर अंबानी या अडाणी प्राइवेट मंडी खोलेंगे तो वो कौन सा खुद आकर किसान की फसल खरीदेंगे? वो भी बीच में एजेंट को लगाएंगे। एक की बजाय दो बिचौलिए हो जाएंगे एक कोई छोटा एजेंट और उसक े ऊपर अंबानी या अडाणी। दोनों अपना-अपना हिस्सा लेंगे। फर्क इतना ही है कि आज आढ़ती जितना कमीशन लेता है, तब दोनों बिचौलिए मिलाकर उसका दुगना कमीशन काट लेंगे। आज मैं आढ़ती क े तख्त पर जाकर बैठ जाता हूं, जरुरत में उससे पैसा पकड़ लेता हूं। उसकी जगह क ं पनी हुई तो सारा टाइम फोन पकड़कर बैठा रहूंगा, सुनता रहूंगा कि अभी सारी लाइनें व्यस्त हैं। मास्टर जी बता रहे थे कि नए कानून में आपने किसान और व्यापारी क े इलावा “थर्ड पार्टी” को जगह दी है। ये थर्ड पार्टी बिचौलिया नहीं तो और क्या है? मोदी जी: हमने यह भी व्यवस्था कर दी है कि व्यापारी चाहे तो अपने गोदाम में जितना मर्जी माल रख सकता है। इससे वह आपको बेहतर रेट दे पाएगा। किसान: आप तो खुद व्यापारी रहे हो मोदी जी। आप ही बताओ, व्यापारी ने दुकान खोली है या धर्मशाला? आप कहते हो तो मान लेता हूं कि ज्यादा स्टॉक रखकर वह ज्यादा मुनाफा कमायेगा और चाहे तो किसान को ज्यादा रेट दे सकता है। लेकिन वो मुझे ज्यादा रेट क्यों देगा? वह अपना गोदाम भरेगा। जब मेरा फसल बेचने का टाइम आएगा उससे पहले क ु छ माल बाजार में उतार देगा ताकि रेट गिर जाए। और जब सब किसान फसल बेच लेंगे तब जमाखोरी कर लेगा ताकि भाव चढ़ जाए। मेरे लिए फसल का रेट गिर जायेगा, लेकिन गरीब खरीददार को मंहगा पड़ेगा। किसान और मजदूर दोनों को ही मार पड़ेगी, बड़ा व्यापारी मालामाल हो जायेगा। वैसे भी मंडी में जब किसान को रेट देने की बात आती है तो सब व्यापारी मिलीभगत कर लेते हैं और बोली चढ़ने नहीं देते। मोदी जी: ऐसा न हो उसक े लिए हमने कॉन्ट्रैक्ट की खेती की व्यवस्था भी कर दी है। फसल बुवाई से पहले ही आप क ं पनी से कॉन्ट्रैक्ट कर लो कि कितने भाव में कितनी फसल बेचोगे। किसान: मैंने तो कभी ऐसा कॉन्ट्रैक्ट नहीं किया लेकिन उसकी कहानी सुनी है। पंजाब में पेप्सी क ं पनी ने आलू चिप्स क े लिए
  • 7. 10 11 आलू क े किसानों से 6 रुपये किलो क े भाव से कॉन्ट्रैक्ट किया था। पहले साल मंडी में दाम 8 रुपये किलो चल रहा था तो क ं पनी ने कांट्रेक्ट दिखाकर किसानों से 6 रुपये किलो में खरीदा। अगले साल जब मंडी में भाव गिरकर 4 रुपये किलो हो गया तो क ं पनी मुकर गयी। बोली तुम्हारे आलू की क्वालिटी ठीक नहीं है। किसान बेचारा क ं पनी क े वकीलों से कहां जाकर लड़ता? अब आप ही बताओ, इतने लम्बा चौड़े कॉन्ट्रैक्ट मैं क्या समझूंगा? वकीलों की फीस कौन देगा? आपक े कॉन्ट्रैक्ट से तो हमारा मुँहज़बानी ठेका और बंटाई का तरीका ही अच्छा है। मोदी जी: आपको सारी ग़लतियाँ हमारी ही नज़र आती है? पिछली सरकारों क े राज में क्या किसान खुश थे? किसान: अगर किसान तब खुश होते तो आज आप इस क ु र्सी पर बैठे न होते। किसान दुखी थे इसीलिये तो आपकी बातों पर भरोसा किया।पिछली सरकारों क े निकम्मेपन क े चलते हट्टा- कट्टा किसान हस्पताल में पहुंच गया। आपकी सरकार ने उसे आईसीयू तक पंहुचा दिया। अब आप उसकी ऑक्सीजन हटाने पर तुले हो। अब भी मन नहीं भरा आपका। पराली जलाने को रोकने क े लिए आपने किसानो पर एक करोड़ रुपये क े जुर्माने और पांच साल की सजा का कानून भी बना दिया है। मुझे पता लगा की किसान की सस्ती बिजली बंद करने का कानून भी आप बना चुक े हो। मोदी जी: हो सकता है इन कानूनों में कोई कमी रह गयी हो। आप बताओ इनमे क्या बदलाव चाहिए? हम संशोधन क े लिए तैयार हैं। तीनों कानून रद्द ही हों, यह जिद क्यों? किसान: अच्छा मजाक करते हो आप। मुझे चाहिए थी पैंट, आपने बना दी सलवार, और अब कहते हो इसमें कांट-छांट करवा लो। संशोधन तो तब होता है जब कानून की मूल भावना सही हो, कोई छोटी-मोटी कसर रह गयी हो। ये तीनों कानून तो किसान को जो चाहिए उसक े उलट हैं। इनमे संशोधन से क ै से काम चलेगा? वैसे भी अगर ये मेरे लिए सौगात थी और मुझे पसंद नहीं है तो वापिस क्यों नहीं कर सकता मैं? सौगात में सौदेबाजी की क्या जरूरत? क ु छ भी संशोधन करवा लो बस कानून रद्द नहीं हों, यह जिद क्यों? मोदी जी: हमने तो उसे भी छोड़ दिया। हमने तो कह दिया कि डेढ़ साल क े लिए तीनों कानूनों पर रोक लगा देते हैं। इसमें भी आप नहीं मान रहे?
  • 8. 12 13 किसान: अगर रोक लगाने को तैयार हो तो मतलब क ु छ गड़बड़ है न? अगर गड़बड़ है तो सिर्फ रोक क्यों लगा रहे हो, रद्द क्यों नहीं कर रहे? डेढ़ साल का ऐसा क्या मुहूर्त निकला है? अगर आपको लगता है कि डेढ़ साल में किसान आपकी बात मान जायेंगे तो अभी रद्द कर दो, डेढ़ साल बाद किसानो से पूछकर नया कानून ले आना। इसे आप अपनी नाक का मामला क्यों बना रहे हो? मोदी जी: मैं तुम्हे क ै से समझाऊं? ये नेता लोग तुम्हे बहका रहे हैं, डरा रहे हैं, गुमराह कर रहे हैं। किसान: सच बोलूं प्रधानमंत्री जी? वो नहीं, आप और आपक े दरबारी बहका रहे हो इतने महीनों से। कभी कहते हो मैं अन्नदाता हूँ, कभी मुझे आतंकवादी बताते हो। कभी कहते हो हमारा आंदोलन पवित्र है, कभी हमें देशद्रोही बताते हो। कहते हो बातचीत क े दरवाजे खुले हैं, लेकिन किसानों क े खिलाफ क े स बनाते हो, रास्ते में कील और तार बिछाते हो।आपका मन खुला नहीं है। मैंने सुना था बड़े नेता बंद रास्तों को खोलते हैं। पता नहीं क्यों आपको चलती हुई चीजों को बंद करने का शौक है। पहले नोटबंदी, फिर देशबन्दी और अब किसान की घेरा बंदी। देखो मोदी जी, ये जो मंडी हैं न, ये समझो एक छप्पर है मेरे सर पर। छप्पर टूटा है, इसमें पानी टपकता है, इसकी मरम्मत की जरूरत है। लेकिन आप तो छप्पर ही हटा रहे हो। और कहते हो इससे मुझे खुला आकाश दिखाई देगा, रात को चाँद-तारे दिखाई देंगे! बिना छप्पर क े जीने की आज़ादी मुझे नहीं चाहिए ... किसान की नज़र आकाश से नीचे उतरी तो देखा कि मोदी जी झोला उठाकर चले जा रहे थे। वो भी उठ खड़ा हुआ, किसान आंदोलन में शामिल होने क े लिए।
  • 9. 14 15 किसान विरोधी कानूनों का पूरा सच सरकारी नाम: आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम 2020 असली काम: जमाखोरी और कालाबाजारी पर रोक/टोक बंद फायदा: अडाणी, बड़े स्टॉकिस्ट, थोक व्यापारी व एक्सपोर्ट क ं पनी को नुकसान: छोटे किसान को, गरीब उपभोक्ता को कानून का ब्यौरा: इस कानून से 1955 क े जमाखोरी रोकने वाले कानून में संशोधन किया गया है। पहले जरूरत पड़ने पर सरकार खाद्य पदार्थों जैसे अनाज, दाल, तेल, बीज, आलू, प्याज आदि को एक हद से ज्यादा जमा स्टॉक इकट्ठा करने पर पाबंदी लगा सकती थी। अब यह पाबंदी लगभग हटा दी गई है। सिर्फ प्राक ृ तिक आपदा आदि में पाबंदी लग सकती है, या अगर अनाज का दाम डेढ़ गुना और सब्जी दुगना हो जाए। एक्सपोर्ट करने वालों पर कोई पाबंदी नहीं लग सकती। सरकारी तर्क :  बड़ी क ं पनियां अब खुलकर वेयरहाउस और कोल्ड स्टोर बनाएगी  खाद्य पदार्थों का भंडारण बढ़ेगा, बर्बादी घटेगी  व्यापारी ज्यादा कमाएगा तो किसानों को भी बेहतर भाव देगा पूरा सच:  व्यापारी तो ज्यादा कमाएगा, लेकिन किसान को बेहतर भाव नहीं देगा।  असीमित स्टॉक रखने वाला व्यापारी बाजार से खेलेगा। फसल आने से पहले भाव गिरा देगा और उपभोक्ता को बेचने से पहले दाम बढ़ा देगा।  वेयरहाउस और कोल्ड स्टोर में पैसा लगाने से से सरकार हाथ खींच लेगी। सुविधा वहां बनेगी जहां क ं पनी को मुनाफा मिलेगा, वहां नहीं जहां किसान को जरूरत है। छोटे किसान को सबसे ज्यादा नुकसान होगा।  नए नियमों क े तहत सरकार को स्टॉक और बाजार की सूचना ही नहीं होगी। जरूरत पड़ने पर भी सरकार दखल नहीं दे पाएगी।  जब स्टॉक की लिमिट हटाने से किसान को फायदा हो सकता है तब नहीं हटाई जाएगी। इस साल आलू और प्याज में यही हुआ। लेकिन जब व्यापारी को फायदा होगा तब लिमिट हटा ली जाएगी।  एक्सपोर्ट की छू ट क े नाम पर अडाणी जैसे व्यापारियों पर कभी भी लिमिट नहीं लग सक े गी।  यह कानून आने से पहले ही अडाणी एग्रो लॉजिस्टिक क ं पनी ने बड़े-बड़े गोदाम (साइलो) बनाने शुरू कर दिए थे। लॉकडाउन क े समय क ं पनी को हरियाणा सरकार ने सी एल यू की अनुमति दी थी असली खेल यही है। जमाखोरी छू ट कानून
  • 10. 16 17 मंडी बंदी कानून सरकारी नाम: क ृ षक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) अधिनियम 2020 असली काम: सरकारी मंडी को धीरे धीरे ख़त्म करना, ताकि सरकारी खरीद क े सरदर्द से बचा जा सक े फायदा: प्राइवेट मंडी क े मालिकों और उनक े कमीशन एजेंट को नुक़सान: सरकारी मंडी पर निर्भर किसानों और आढ़तियों को कानून का ब्यौरा: अब तक किसान की फसल को व्यापारी सिर्फ सरकारी मंडी (एपीएमसी) में ही खरीद-बेच सकता था। अब सरकारी मंडी क े बाहर कहीं भी व्यापार हो सक े गा। प्राइवेट मंडी भी खुल सक े गी। दोनो मंडियों पर दो अलग तरह क े नियम कानून लागू होंगे। सरकारी मंडी क े बाहर होने वाले व्यापार पर न तो कोई फीस या टैक्स लगेगा, न ही रजिस्ट्रेशन या रिकॉर्ड िं ग होगी, न ही सरकार उसकी निगरानी करेगी। सरकारी तर्क :  किसान को पहली बार फसल जहां मर्जी बेचने की आजादी होगी।  किसान को एक से ज्यादा विकल्प मिलेगा जिससे वह बाजार में बेहतर भाव वसूल कर सक े गा।  किसान बिचौलियों क े चंगुल से मुक्त हो जाएगा।  प्राइवेट मंडी का मुकाबला होने से सरकारी मंडी में फीस घटेगी, कमीशन कम होगा, भ्रष्टाचार कम होगा। पूरा सच:  संविधान क े अनुसार क ें द्र सरकार क ृ षि व क ृ षि मंडियों पर कानून बना ही नहीं सकती, यह अधिकार सिर्फ़ राज्य सरकारों क े पास है।  व्यवहार में किसान को फसल जहां चाहे वहां बेचने की आजादी हमेशा रही है। आज भी 70% फसल सरकारी मंडी क े बाहर बिकती है।  किसान को मंडी से आजादी नहीं चाहिए। उसे जितनी आज हैं उनसे ज्यादा व बेहतर मंडियां चाहिए जिनकी निगरानी अच्छे तरीक े से हो।  पहले एक-दो साल प्राइवेट मंडी में सरकारी मंडी से थोड़ा अधिक दाम दिया जाएगा। इससे सरकारी मंडी बैठ जाएगी। फिर प्राइवेट मंडी क े व्यापारी किसान को मनमाने तरीक े से लूटेंगे।  बिहार में 2006 में सरकारी मंडिया खत्म कर दी गई थी। आज बिहार क े किसान को धान, मक्का, गेहूं का दाम बाकी देश से बहुत कम मिलता है। देशभर क े किसान को गेहूं, धान, मक्का का जो भाव मिलता है बिहार क े किसान को उससे बहुत कम मिलता है।  सरकारी मंडी क े बाहर एक नहीं दो बिचौलिए होंगे। प्राइवेट मंडी खोलने वाली क ं पनी भी अपने एजेंट नियुक्त करेगी। वह भी अपना कमीशन लेंगे। ऊपर से प्राइवेट मंडी का मालिक भी अपना कट लेगा।  सरकारी मंडी की फीस कम होने से सरकार क े पास ग्रामीण इलाकों में सड़क और अन्य सुविधाएं बनाने क े लिए पैसे नहीं बचेंगे।
  • 11. 19 18 बंधुआ किसान कानून सरकारी नाम: क ृ षि (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत अश्वासन और क ृ षि सेवा करार अधिनियम, 2020 असली काम: बड़ी क ं पनियों को सीलि ं ग क े कानून से बचाकर बड़े पैमाने पर खेती का रास्ता साफ़ करना फायदा: रिलायंस जैसी बड़ी क ं पनियों और वकीलों को नुकसान: अनपढ़ या भोले किसानों को कानून का ब्यौरा: किसान और क ं पनी पांच साल तक का कॉन्ट्रैक्ट कर सक ें गे। कॉन्ट्रैक्ट में पहले से लिख दिया जाएगा कि क ं पनी किसान की कौन सी फसल, किस क्वालिटी की, कितने दाम पर खरीदेगी। अगर दोनों में विवाद होता है तो फ ै सला एसडीएम या कलेक्टर करेंगे। सरकारी तर्क :  किसान कॉन्ट्रैक्ट तभी करेगा अगर उसे अपना फायदा दिखाई देगा।  किसान और क ं पनी दोनों भाव क े उतार-चढ़ाव क े जोखिम से बचेंगे।  कॉन्ट्रैक्ट क े लिए किसान इकट्ठे होकर समूह बना लेंगे। इससे सहकारी खेती बढ़ेगी।  सरकार कानून में संशोधन कर देगी ताकि कम्पनी ज़मीन पर लोन ना ले सक े , किसान की क ु र्की ना हो सक े । पूरा सच:  कॉन्ट्रैक्ट की कानूनी बारीकियां और पेंच समझना किसान क े बस की बात नहीं है।  क ं पनी क े पास ज्यादा सूचना होगी, बेहतर वकील होंगे, ज्यादा ताकत होगी। इसलिए कॉन्ट्रैक्ट में किसान क े ठगे जाने की संभावना है।अगर कम्पनी को नुक़सान होता दिखा तो वो कॉंट्रैक्ट से हाथ झाड़ लेगी।  पंजाब क े किसानों क े साथ यही हुआ। जब मंडी में आलू क े दाम कॉन्ट्रैक्ट से ज्यादा मिल रहे थे तब तो क ं पनी ने कॉन्ट्रैक्ट वाले रेट पर खरीदा। लेकिन जब दाम कम हो गए तो क ं पनी ने आलू की क्वालिटी खराब होने का बहाना लगाकर हाथ झाड़ लिए।  कॉन्ट्रैक्ट में किसान को न्यूनतम मूल्य की गारंटी नहीं है।  कम्पनी को अधिकार है की वो किसान से अपना पूरा निवेश वसूले, चाहे किसान को अपना घर और ज़मीन बेचनी पड़े। आमतौर पर कांट्रेक्ट महंगी फसलों का होता है जिसमें कम्पनी क े मुकरने पर किसान को भारी नुकसान होता है, जमीन बेचने की नौबत आ जाती है।  सहकारी खेती को धक्का लगेगा, क्योंकि इस कानून में किसानों क े संगठन और क ं पनी को एक बराबर कर दिया है।  कॉन्ट्रैक्ट क े बहाने चोर दरवाजे से क ं पनियां खेती की जमीन पर धीरे- धीरे कब्जा शुरू कर सकती हैं।
  • 12. 20 21 अपराधी किसान कानून सरकारी नाम: राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और इससे जुड़े क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन क े लिए आयोग अध्यादेश, 2020 असली काम: वायु प्रदुषण रोकने में सरकारों क े निकम्मेपन से जनता का ध्यान हटा कर किसान पर दोष डाल देना फायदा: दिल्ली क े अमीरों का, प्रदूषण कमीशन इंस्पेक्टरों का नुकसान: दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान ,उत्तर प्रदेश क े किसानों का कानून का ब्यौरा: दिल्ली और एनसीआर इलाक े में वायु प्रदूषण को रोकने क े लिए क ें द्र सरकार ने एक कमीशन बनाया है। यह कमीशन दिल्ली,हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में कहीं भी प्रदूषण कम करने क े लिए कोई भी आदेश दे सक े गा। आदेश न मानने पर एक करोड़ रुपए तक का जुर्माना और पांच साल तक की सजा होगी। अपील सिर्फ एनजीटी में होगी। सरकारी तर्क : दिल्ली और आसपास क े इलाकों की हवा में भयानक प्रदूषण को कम करने क े लिए सख्ती से किसानों द्वारा पराली जलाना रोकना पड़ेगा। पूरा सच: वायु प्रदूषण क े सबसे बड़े स्रोत उद्योग, वाहन व भवन निर्माण हैं, पराली का धुआं नहीं। इतनी कड़ी सजा देने की ताकत कमीशन को देने से दलाल व इंस्पेक्टर किसान को हमेशा परेशान करेंगे। बिजली झटका कानून सरकारी नाम: विद्युत अधिनियम (संशोधन) विधेयक, 2020 असली काम: बिजली क े वितरण का धंधा प्राइवेट क ं पनियों को सौंपना फायदा: बिजली वितरण क े बिज़नेस में घुसने को बेताब प्राइवेट क ं पनियों को नुकसान: सस्ती बिजली पाने वाले किसान और शहरी गरीब को, सरकारी बिजली क ं पनियों को कानून का ब्यौरा: बिजली क े बिजनेस में सबसे ज्यादा मुनाफा वितरण यानी ग्राहकों तक बिजली पहुंचाने क े काम में है। यह प्रस्तावित कानून अभी संसद में पेश नहीं हुआ है, लेकिन अगर यह कानून बन गया तो बिजली वितरण में प्राइवेट क ं पनियों क े घुसने का रास्ता साफ़ हो जायेगा। साथ में उन्हें गरीबों, किसानों और गाँव को सस्ती बिजली देने क े झंझट से मुक्ति मिल जाएगी। राज्य सरकारों पर पाबन्दी लग जाएगी कि वो अपनी जेब से भी सस्ती या मुफ्त बिजली नहीं दे सक ें गी। सरकारी तर्क : सरकारी बिजली बोर्ड और कम्पनियो क े घाटे और बिजली की चोरी को रोकने क े लिए यह जरूरी है। पूरा सच: यह राज्य सरकार का फ ै सला होना चाहिए, क ें द्र सरकार का नहीं। इससे किसान का खर्चा और बढ़ेगा। गाँव-कस्बे और गरीब बस्तियों में बिजली की सप्लाई खराब होगी।
  • 13. 22 23 एमएसपी गारंटी कानून प्रस्तावित नाम: क ृ षि उत्पादों का न्यूनतम समर्थन मूल्य गारंटी विधेयक, 2021 असली काम: किसान को कानूनी गारंटी देना कि उसे हर फसल का कम से कम एमएसपी क े बराबर दाम मिलेगा। फायदा: किसान को, देश की अर्थव्यवस्था को नुकसान: किसान को लूटने वालों को कानून का ब्यौरा: पिछले 54 साल से क ें द्र सरकार स्थाई तौर पर क ु छ फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित कर देती है, लेकिन लेकिन इसकी कोई व्यवस्था नहीं करती कि किसान को कम से कम उतना मूल्य मिले। इसलिए किसान चाहते हैं कि ऐसा कानून हो कि एक स्वतंत्र और कानूनी दर्जा प्राप्त कमीशन बने जो हर फसल की एमएसपी को स्वामीनाथन कमीशन क े अनुसार संपूर्ण लागत का डेढ़ गुना पर तय करे। सरकार द्वारा घोषित एमएसपी किसान को सचमुच मिले, गारंटी से मिले, इसक े लिए सरकारी खरीद में दाल, तिलहन और मोटे अनाज को भी शामिल किया जाए। सरकार देशी और विदेशी बाजार में दखल देकर किसान को एमएसपी दिलाए। फसल एमएसपी से नीचे बिकने पर सरकार किसान की भरपाई करे। मंडी में बोली एमएसपी से ही शुरू हो। सरकारी तर्क :  सारी फसलें खरीदना सरकार क े लिए संभव नहीं है। इस भंडार का सरकार क्या करेगी? खराब क्वालिटी को क ै से खरीदेगी?  किसान को मुआवजा देने क े लिएजितना पैसा चाहिए वह सरकार क े पास नहीं है। सरकार का सारा बजट इसी में खर्च हो जाएगा।  न्यूनतम रेट फिक्स कर देने से बाजार बिगड़ जाएगा। मांग-आपूर् ति का संतुलन नहीं बचेगा। पूरा सच:  सरकार को सभी फसलें पूरी खरीदना जरूरी नहीं है। इस कानून में किसान को फसल का रेट दिलाने क े कई और तरीक े सुझाए गए हैं। जैसे बाजार में सीमित दखल(मार् के ट इंटरवेंशन), आयात-निर्यात नीति में बदलाव, भाव कम मिलते पर भरपाई और एमएसपी से नीचे बोली पर कानूनी रोक।  अगर सरकार सचमुच चाहे तो बजट में पैसा निकल आएगा वर्तमान एमएसपी दिलाने क े लिए 50 हजार करोड़ रु खर्च होगा। स्वामीनाथन कमीशन क े हिसाब से संपूर्ण लागत की डेढ़ गुना एमएसपी दिलाने क े लिए लगभग तीन लाख करोड़ रुपए खर्च होगा। सरकार का बजट 34 लाख करोड़ रुपए है।  अगर बाजार व्यवस्था में उपभोक्ताओं क े लिए एमआरपी फिक्स हो सकती है, मजदूर क े लिए न्यूनतम मजदूरी तय हो सकती है, तो किसान क े लिए एमएसपी क्यों नहीं?  सरकारी खरीद वर्तमान FAQ(फ े यर एंड एवरेज क्वालिटी) मानक क ें द्र क े अनुसार होगी। खराब क्वालिटी होने पर रेट में कटौती होती है।
  • 14. 24 देखो मोदी जी की अक्लमंदी पहले नोटबंदी, फिर देशबन्दी अब किसान की घेराबंदी बाजार अडाणी-अम्बानी का, किसान की मंडी बंद मंडी नहीं रहेगी तो फसल की सरकारी खरीद बंद गेहूं धान की खरीद बंद तो राशन की दुकान बंद जमाखोरी और कालाबाजारी पर हर रोकटोक बंद क ं पनियों से कॉन्ट्रैक्ट में किसान की किस्मत बंद खेती क े लिए फ्री या सस्ती बिजली मिलनी बंद पराली क े बहाने किसान पांच साल जेल में बंद किसान ने भी कर ली मुठ्ठी बंद जात-बिरादरी और पार्टीबाजी बंद किसान विरोधी नेताओं का वोट बंद ऐसी सरकारों का बोरिया-बिस्तर बंद फसल वर्तमान एमएसपी (रुपये) स्वामीनाथन एमएसपी (रुपये) गेहूं 1975 2201 धान 1868 2501 सरसों 4650 5205 चना 5100 6018 जौ 1600 2106 ज्वार 2620 3590 रागी 3295 4145 मसूर 5100 6306 बाजरा 2150 2333 फसल वर्तमान एमएसपी (रुपये) स्वामीनाथन एमएसपी (रुपये) मक्का 1850 2409 अरहर 6000 8196 मूंग 7196 9434 उड़द 6000 8355 मूंगफली 5275 6768 सूरजमुखी 5885 7619 सोयाबीन 3880 5270 कपास 5515 7403 तिल 6855 9323 किसान कितने भाव की गारंटी चाहते हैं: नोट: “वर्तमान एमएसपी” का मतलब भारत सरकार द्वारा पिछले सीजन (खरीफ 2020-21 और रबी 2021-22) में घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य। “स्वामीनाथन एमएसपी” का मतलब स्वामीनाथन कमीशन द्वारा सुझाए गए फार्मूले यानी संपूर्ण लागत का डेढ़ गुना (C2+50%) क े हिसाब से एमएसपी कितनी होनी चाहिए। स्रोत: CACP, भारत सरकार, की नवीनतम खरीफ और रबी की रपट।
  • 15. जय किसान आंदोलन मिस्ड कॉल करें जुड़ने क े लिए मुद्रण: सहारा प्रिं टर, दिल्ली ‘जय किसान आंदोलन’ अखिल भारतीय गैर चुनावी किसान संगठन है। वर्ष 2015 में स्थापित यह संगठन फिलहाल हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और कर्नाटका में सक्रिय है और अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (AIKSCC) का घटक संगठन है। 844 889 3011 JaiKisanAndolan @_jaikisan jkanational@gmail.com हेल्पलाइन : 7206855400 स्वराज अभियान प्रकाशन